बढ़ते तापमान और रेता कंकड़ की वजह से तेजी से बदल रहा है हिमालय के ग्लेशियरों का आकार
देहरादून। बढ़ते तापमान और रेता कंकड़ की वजह से हिमालय के ग्लेशियरों का आकार तेजी से बदल रहा है। ग्लेशियर बर्फ का द्रव्यमान भी खो रहे हैं। 2015 के बाद पिथौरागढ़ जिले के उच्च हिमालयी क्षेत्र में मिलम ग्लेशियर के सतह पर मलबे की दर लगातार बढ़ रही है।
यह बातें कुमाऊं विवि डीएसबी भूगोल विभाग के शोध छात्र मासूम रेजा के शोध पत्र में सामने आई है। प्रो आरसी जोशी के निर्देशन में शोध कर रहे मासूम ने इंटरनेशनल जोग्रफिकल यूनियन की ओर से केंद्रीय विवि हरियाणा में आयोजित कांफ्रेंस में मिलम ग्लेशियर पर अपना ताजा शोध पत्र पेश किया है। इस शोध को अपने समूह में बेस्ट पेपर अवार्ड मिला है। शोध पत्र के मुताबिक सालाना मिलम ग्लेशियर में 3.6 प्रतिशत रेता, कंकड़ का मलबा आ रहा है। जिससे 1972 से 2018 तक मिलम ग्लेशियर की 37.8 मीटर पीछे खिसका है। मासूम रेजा ने कहा कि हिमालय के ग्लेशियरों के बदलते स्वरूप को समझने के लिए निरंतर अध्ययन की जरूरत है। जिससे कारणों को समझ कर रोकने के उपाय किए जाएं।
शोध के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग के साथ ही ग्लेशियर को प्रभावित करने वाले अन्य कारण भी हैं। ऑप्टिकल और राडार रिमोट सेसिंग डेटा व फील्ड विजिट के अध्ययन से पता चला है कि बोल्डर व रेता-कंकड़ आदि के मलबे के कारण ग्लेशियर की ऊंचाई कम हो रही है। 2015 के बाद से सुपर मलबे की दर बढ़ रही है। मिलम ग्लेशियर सालाना 3.5 प्रतिशत मलबा आ रहा है। 2007 से इसकी सतह कम होने की दर सवा दो मीटर तक घट गई है। 46 में 37.8 मीटर खिसका है।
मिलम ग्लेशियर शोध के यह हैं अहम तथ्य
मिलन ग्लेशियर के सतह की ऊंचाई सालाना सवा दो मीटर से प्लस माइनस 1.44 मीटर तक घट रही है।
सतह की ऊंचाई में कमी के जिम्मेदार कारणों में एक सुप्रा मलबे का भार बढ़ना है।