महिलाओं का संकट और उनकी रोजी-रोटी
अजय दीक्षित
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव विभिन्न समूहों और समुदायों में महसूस किया जाता है। हालांकि, यह प्राकृतिक संसाधनों पर भारी निर्भरता, उच्च गरीबी स्तर, बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच की कमी आदि के कारण महिलाओं के लिए आनुपातिक रूप से अधिक है । बाढ़-सूखे जैसी चरम जलवायु घटनाओं का गरीब महिलाओं पर अधिक प्रभाव पड़ेगा, जो विनाशकारी प्रभाव भी पैदा कर सकता है। एशिया और अफ्रीका में जलवायु परिवर्तन के चलते पुरुषों को अपने खेतों को छोडक़र काम-धंधे की तलाश में पलायन करना पड़ रहा है, जिससे घर पर रहने वाली महिलाओं पर काम का दबाव बढ़ रहा है। महिलाओं को अकेले ही अपने बच्चों-खेतों का ध्यान रखना होता है। ये विषम परिस्थितियों में जीवन जीने को मजबूर हैं। उनके स्वास्थ्य पर भी असर पड़ रहा है। दरअसल, लैंगिक असमानता के चलते महिलाएं मछली पकडऩे, कृषि, बागवानी आदि जैसी आजीविका पर अधिक निर्भर हैं। जो जलवायु परिवर्तन से खतरे में हैं। जलवायु परिवर्तन की घटनाओं में वृद्धि से महिलाओं की उत्पादकता और आय में कमी आएगी, जिससे लैंगिक असमानता का स्तर बढ़ेगा। दरअसल, सूखा और बाढ़ जगह को रहने लायक नहीं छोड़ते हैं, जिससे कमजोर क्षेत्र में रहने वाले लोगों के समूह का विस्थापन हो सकता है। हालांकि, इससे महिलाओं के प्रभावित होने की संभावना अधिक होती है।
उदाहरण के लिए, संयुक्त राष्ट्र के अनुमानों के आधार पर, जलवायु परिवर्तन से विस्थापित होने वाले लोगों में 80 फीसदी महिलाएं हैं। महिलाएं सूखे और पानी की कमी से भी अधिक प्रभावित होती हैं, अक्सर दूर के जल संसाधनों तक यात्रा करने और अपने परिवारों के लिए पानी उपलब्ध कराने के लिए काफी समय खर्च करती हैं। पूर्वी अफ्रीका में, सूखे के कारण चरवाहे किसानों को पानी खोजने के लिए काफी आगे की यात्रा करनी पड़ी है। जलवायु परिवर्तन कृषि की उत्पादकता को कम करता है, जिससे वैश्विक खाद्य सुरक्षा को खतरा हो सकता है। भोजन की कमी के समय लड़कियों को लडक़ों की तुलना में कम भोजन उपलब्ध कराए जाने की आशंका अधिक होती है, इस प्रकार वे कुपोषण और बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हैं, विशेष रूप से वेक्टर जनित रोग जो जलवायु परिवर्तन द्वारा अधिक प्रचलित हैं । आपदाओं के बाद, महिलाओं के यौन उत्पीडऩ, हिंसा का शिकार होने और अन्य मानवाधिकारों के उल्लंघन का सामना करने की संभावना अधिक होती है । इस संकट के चलते महिलाओं ने ऐतिहासिक रूप से जल संचयन, खाद्य संरक्षण और राशनिंग और प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन से संबंधित ज्ञान और कौशल विकसित किया है। इस पारंपरिक ज्ञान का उपयोग किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, अफ्रीका में बूढ़ी महिलाएं अपने विरासत में मिले ज्ञान से आपदा की शुरुआती चेतावनियों और आपदाओं के प्रभावों को कम करने से संबंधित ज्ञान पूल का प्रतिनिधित्व करती हैं। शिक्षा और कौशल को बढ़ावा देने के लिए स्वयं सहायता समूहों का लाभ उठाया जा सकता है। जो जलवायु परिवर्तन के खिलाफ अनुकूलन रणनीति विकसित करने में मदद कर सकते हैं। महिलाएं प्राकृतिक आपदाओं के लिए सामुदायिक प्रतिक्रियाओं के रूप में कार्य कर सकती हैं। जमीनी स्तर के महिला संगठनों के माध्यम से जलवायु निवेश को आगे बढ़ाया जा सकता है ।
अनुकूलन पहलों, विशेष रूप से जल, खाद्य सुरक्षा, कृषि, ऊर्जा, स्वास्थ्य, आपदा प्रबंधन और संघर्ष से संबंधित क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के लिंग-विशिष्ट प्रभावों की पहचान और पता करना चाहिए। महिलाओं की प्राथमिकताओं और जरूरतों को विकास योजना और वित्त पोषण में प्रतिबिंबित होना चाहिए। जलवायु परिवर्तन की चुनौती के मुकाबले के लिये संसाधनों के आवंटन के संबंध में राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी हो। प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और क्षमता निर्माण के कार्यक्रमों में लिंग- संवेदनशील निवेश सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है। अनुदान देने वाले संगठनों और दाताओं को विकास करते समय महिला- विशिष्ट परिस्थितियों को भी ध्यान में रखना चाहिए। महिलाएं अभी भी एक बड़े पैमाने पर निर्णायक भूमिका में नहीं हैं। प्रतिबंधित भूमि अधिकार, वित्तीय संसाधनों तक पहुंच की कमी, प्रशिक्षण व प्रौद्योगिकी और राजनीतिक निर्णय लेने वाले क्षेत्रों तक सीमित पहुंच अक्सर उन्हें जलवायु परिवर्तन से निपटने में पूरी भूमिका निभाने से रोकती हैं।
महिलाएं जलवायु परिवर्तन से असमान रूप से प्रभावित होने के बावजूद जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और शमन के लिए महत्वपूर्ण हैं और उन्हें निर्णय लेने में शामिल होना चाहिए जलवायु परिवर्तन का पुरुष के मुकाबले महिला की सेहत पर ज्यादा बुरा असर हो रहा है। जलवायु परिवर्तन की वजह से मृत्यु और उनको लगने वाली चोट की दर पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में दो- तिहाई ज्यादा है। महिलाओं को सशक्त बनाने की जरूरत है ।