अकेले गोवर्धन उठाए केजरीवाल
हरिशंकर व्यास
अरविंद केजरीवाल और भाजपा की राजनीति में सिर्फ वैचारिक समानता ही नहीं है, बल्कि केजरीवाल बिल्कुल उसी तरह राजनीति कर रहे हैं, जैसे नरेंद्र मोदी करते हैं। भाजपा की पूरी राजनीति पिछले आठ-नौ साल से नरेंद्र मोदी के चेहरे पर केंद्रित है। एक से दस नंबर तक वे हैं और उसके बाद ही किसी नेता का नंबर आता है। वैसे ही आम आदमी पार्टी में एक से दस नंबर तक केवल केजरीवाल हैं। उसके बाद किसी और का नंबर आता है। आम आदमी पार्टी केजरीवाल की पार्टी है, दिल्ली और पंजाब दोनों जगह की सरकार केजरीवाल की सरकार है और पार्टी के सारे विधायक व सांसद केजरीवाल के सांसद व विधायक कहे जाते हैं। इस मामले में केजरीवाल की राजनीति नरेंद्र मोदी से एक कदम आगे है। पिछले दिनों दिल्ली की राजेंद्र नगर सीट पर उपचुनाव हुआ था, जिसमें आप ने दुर्गेश पाठक को उम्मीदवार बनाया था। समूचे प्रचार में एकाध अपवाद को छोड़ दें तो हर जगह पोस्टर और होर्डिंग पर उम्मीदवार की सिर्फ फोटो लगी थी और उसका नाम नहीं लिखा हुआ था। लोगों से केजरीवाल और झाड़ू छाप पर वोट देने की अपील थी।
जाहिर है पूरी पार्टी एक व्यक्ति के करिश्मे पर चल रही है। हजारों करोड़ रुपए के प्रचार से आम आदमी पार्टी ने केजरीवाल का ब्रांड स्थापित किया है। दिल्ली सरकार स्कूल बनाती है तो उसे केजरीवाल का स्कूल कहा जाता है या अस्पताल बनाती है तो उसे केजरीवाल का अस्पताल कहा जाता है। वैसे ही जैसे केंद्र सरकार कुछ भी करती है तो वह नरेंद्र मोदी का काम कहलाता है। यहां तक कि भाजपा के कई नेताओं ने भारतीय सेना को नरेंद्र मोदी की सेना कहा। उसी तरह केजरीवाल भी सब कुछ अपने नाम से करा रहे हैं।
असल में नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल दोनों ने हिंदू मनोदशा को समझा हुआ है। यह सब होना हिंदुओं की 12 सौ साल की गुलामी का असर है। हिंदू हमेशा किसी सम्राट या तानाशाह के सपने देखता रहता है। उसे लगता है कि उसका भविष्य और देश दोनों किसी चक्रवर्ती राजा के हाथों में ही सुरक्षित हैं। उसे पंचायत करने वाले नेता पसंद नहीं हैं। नरेंद्र मोदी भले भारत को लोकतंत्र की जननी कहें लेकिन हकीकत यह है कि भारत में लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों को जरा सा भी नहीं अपनाया है। यहां किसी पार्टी के अंदर आंतरिक लोकतंत्र जैसी कोई बात नहीं होती है। आजादी से पहले देश महात्मा गांधी को मसीहा मानता था तो आजादी के बाद नेहरू मसीहा हुए। इंदिरा गांधी और राजीव गांधी भी मसीहा रहे तो वीपी सिंह में भी लोगों ने मसीहा देखा। उसी तरह नरेंद्र मोदी मसीहा हैं और केजरीवाल भी उसी रास्ते पर चल रहे हैं।
मोदी की तरह केजरीवाल भी अकेले गोवर्धन उठाए हुए हैं। उन्होंने दिल्ली सरकार का कोई भी विभाग अपने पास नहीं रखा है। वे किसी बात के लिए जवाबदेह नहीं हैं। वे फाइलों पर दस्तखत नहीं करते हैं लेकिन हर मुद्दे पर राजनीति करते हैं। यमुना का पानी साफ नहीं है तो उसका मुआयना केजरीवाल करते हैं तो कूड़े के पहाड़ को देखने भी वे ही जाते हैं। स्कूल-अस्पताल का शिलान्यास हो या उद्घाटन सब केजरीवाल करते हैं। पूजा-पाठ, आरती और हनुमान चालीसा का पाठ भी केजरीवाल ही करते हैं। यानी सब कुछ केजरीवाल के ईर्द-गिर्द होता है। तभी नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल के चेहरों में बूझे कि बड़े मियां और छोटे मिंया में क्या और कितना फर्क है!